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चलो अपने आप को समझे समझना समझाना जानना और मानना

नमस्कार मेरे सभी भाइयों बहनों प्यारे मित्रों

कहते हैं सर्प के दंत में विष होता है
बिच्छू की पूंछ में  विश होता है
मक्खी के सिर में विश होता है
कनेर के बीज में विश होता है
पर यह कोई नहीं कहता की मनुष्य की जीभ में सबसे खतरनाक विश होता है
यह तो हम सबकी अलग-अलग सोच है कोई ऐसे देखता है कोई कैसे देखता है पर इस संसार के अधिकांश दुर्लभ मनुष्य का यही कथन है कि हम जैसा इस संसार को देखते हैं यह संसार वास्तव में ऐसा नहीं है
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं यह संसार उल्टे वृक्ष की तरह है अब हमारी सच्चाई तो यही है कि हम इस वाक्य को कैसे ग्रहण करें क्योंकि यह वाक्य हमारे संसार दर्शन के विरुद्ध है
भगवान श्रीकृष्ण यह भी कहते हैं इस संसार में ज्ञान से पवित्र कोई वस्तु नहीं है और आगे कहते हैं ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है और ध्यान से श्रेष्ठ कर्म फल का त्याग है
ज्ञान का अर्थ होता है जानना
ध्यान का अर्थ होता है भूल जाना 0 हो जाना
कर्म फल का त्याग अर्थ है मुक्त हो जाना सभी बंधनों से
पर यह भी सत्य है कि भगवान श्री कृष्ण जैसा कहते हैं वैसा करते नहीं हैं और अगर हम अपनी बुद्धि से यह समझने का प्रयत्न करें कि वह ऐसा क्यों करते हैं तो यही समझ में आता है कि भगवान श्री कृष्ण जैसा कहते हैं वैसा ही करते हैं वह जन्म को जन्म नहीं कहते हैं और ना ही मृत्यु को मृत्यु कहते हैं वह कुछ अलग ही कहते हैं
पर उससे पहले यह जान ले हम क्या कहते हैं हम कहते हैं हमारा जन्म होता है हमारी मृत्यु होती है पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ना तो हमारा जन्म होता है न हीं हमारी मृत्यु होती है हम तो वह है जो कभी समाप्त नहीं होंगे जिस शरीर को हम जन्म और मृत्यु कह रहे हैं वह तो हमारी आत्मा के वस्त्र है और आत्मा वह तत्व है जिसका अग्नि जल वायु शस्त्र शास्त्र कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है
अब यहां एक बात और प्रश्ननात्मक लगती है कि पहले तो मैंने मनुष्य की जीभ को सबसे विषैली बताया फिर ज्ञान ध्यान और कर्म फल के त्याग की बात कही और अब आत्मा की बात कर रहा हूं आखिर में स्वयं क्या कहना चाहता हूं
तो सच यह है कि यही हम सब की वास्तविक जटिलता है कि हम सब हर जगह थोड़े-थोड़े उलझे हुए नजर आते हैं हम करना क्या चाहते हैं और कर क्या जाते हैं हम कहना क्या चाहते हैं और कह क्या जाते हैं यह बात मुझ जैसे लोगों के लिए है उन दृढ़ निश्चयवादियों के लिए नहीं है जिनके संकल्प हिमालय की तरह अडिग है

खैर मुझे तो यह संसार थोड़ा बहुत ही समझ आता है तो उसे समझने और बताने की कोशिश करता हूं सबकी अपनी-अपनी समझ है किसे क्या समझ आता है, किसे क्या समझ आता है, सबको अपनी अपनी समझ, समझने का पूरा अधिकार है भले हमें उनमें त्रुटियां नजर आती है और फिर हम जैसे ही उन त्रुटियों के बारे में उनको बताते हैं तो एक बहस छिड़ जाती है और फिर दोनों ही एक दूसरे को यह समझाने में लगते हैं कि मैंने इस बात को ऐसे समझी है और उन एक दूसरे के जवाबो  में उनकी समझ छूपी होती है जिसे पढ़कर कोई मोन व्यक्ति मन ही मन हंसता है उसी मोन व्यक्ति को समझदार कहते हैं😄😄🙏🙏

#chetanshrikrishna

#मेंलेखकहूँ

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9 Comments

Priyanka Rani

12-Sep-2022 04:23 PM

Nice 👍

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Kaushalya Rani

12-Sep-2022 03:34 PM

Beautiful

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Barsha🖤👑

12-Sep-2022 03:07 PM

Very nice

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